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समाज या सोसायटी
समाज या सोसायटी
इन दिनों देश मैं एक विषय पर खूब चर्चा छिड़ी हुई हैं जगह जगह आन्दोलन हो रहे हैं मिडिया का हरवर्ग इस पर चर्चा कर रहा हैं लेकिन आखिर इस के पीछे का कारन क्या हैं इस पर किसी का ध्यान नहीं हैं आखिर इस के लिए कौन जिम्मेदार हैं क्या हम ही तो इस के लिए जिम्मेदार नहीं हैं एक समय था की जब हमें एक पाठ पढाया जाता थाजिस का नाम था समाज/ ---------- समाज की भूमिका क्या हैं समाज क्या हैं परिबार क्या और अदि लेकिन आज समाज का नया नाम कारण हो गया हैं उस का नाम हैं सोसायटी अर्थात सिमित लोगो तक रहना ----------समाज मैं सभी वर्ग के लोग होते थे मिलना जुलना दुःख दर्द को समझाना और सोसायटी का अर्थ हाँ की पार्टी सार्टी करना और एक दुसरे का बुराई करना पहले एक परिबार हुआ करता था लोग उसे हम कहा करते थे लेकिन आज वह नहीं रहा हैं आज हो गया मैं यानि मैं मेरी बीबी और बच्चे और तो और चुकी सोसय़ाटी हो गया हैं सप्ताह मैं एक दिन छुट्टी बच्चे को घर मैं अकेले छोड़ चल दिए सोसायटी मेम्तें करने अब बच्चा अकेले पण क्या करेगा वह आपना दुःख किसी बताएगा पहले समाज था दादा दादी चाचा चाची वगेरह को आपना दुःख शेयर करता था लेकिन आज वह अकेल हो गया जब की उस के पास कई साधन हैं लोग कहते हैं की महगाई बढ़ गयी हैं आप उस वक़्त को याद करो जब एक घर मैं बीस बीस आदमी रहते थे कमानेवला एक था लेकिन आज कमानेवाला दो हैं खानेवाला एक महगाई तो बढ़ी हैं लेकिन हमारी इक्षाशक्ति भी बढ़ी है हम उमीद से ज्यादा सोचने लगे हैं ऐसा होता तो ऐसा होता और इस चक्कर मैं आपनो को भूल गए हैं हमने समाज को भुला कर सोसायटी बना ली हैं हमारे मन मैं डर ख़त्म हो गया हैं हमारी एक ही मकसद बस आपनी ईच्छा शक्ति को किसी भी कीमत मैं पूरी करना
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