पत्रकारिता -एक सच

पत्रकारिता --एक सच




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हमारी पत्रकारिता की जायदा समय नही हुआ हैं .दस से बारह सल् का आनूभोव हैं .इतने दिन मुझे लगा की इसयह फिल्ड भी आज चाटुकारों के चगुल मैं हैं यहाँ कम करने बाले शायद ही पूछ होती ही .जहा तक झारखण्ड मैं कम करने का जो मुझे आनुभव हुआ हैउसके आनुसार झारखण्ड मैं आज भी पत्रकार का वेतन कार्य के आनुसार नही हैं /हैं!हैं!हैं हैं graa patrkaaro का और भी बुरा हाल हैं यहाँ के संपादक करते है बरी बरी बाते लकिन हकीकत को वो भी छुपाते हैं वो डरते है हकीकक्त बताने से.?जब संपादको से कम वेतनकेबार मैं जिक्र किया जाता है तो उनका एक ही जवाब होता है की मैंने किसी को पर रखने के लिए नही बुलाया था.और यह बात कह कर ताल देते है.क्या इनका जवाब सही रहता है नही.ये तो हमारे हिसाब से। हमनें लगता है की अब संपादक कम करनेवाले रिपोर्टरों का नही बल्कि काम करानेवाले प्रबधानको का होते है इसिस्लिये मैं यह नही कह रहा हु क्योकि आज जो हाल रिपोर्टरों का है उससे तो यही लगता है की संपादक प्रभाधन के सामने ये दीखाने चाहते हैं के खर्चे मैं मैं आखबार निकल लेता हु या प्रबाधन का दवाब रहता है की कमसे कम खर्चे मैं aakhabar निकला jaay1



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